History Dasam Granth Sahib@SH#EP=93

    

                                       इतिहास दशम ग्रंथ साहिब@SH#EP=93

                              by-janchetna.in

दसम ग्रन्थ, सिखों का धर्मग्रन्थ है जो सतगुर गोबिंद सिंह जी की पवित्र वाणी एवं रचनाओ का संग्रह है।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवनकाल में अनेक रचनाएँ की जिनकी छोटी छोटी पोथियाँ बना दीं। उनके देह त्यागने के बाद उनकी धर्म पत्नी माता सुन्दरी की आज्ञा से भाई मणी सिंह खालसा और अन्य खालसा भाइयों ने गुरु गोबिंद सिंह जी की सारी रचनाओ को इकठा किया और एक जिल्द में चढ़ा दिया जिसे आज “दसम ग्रन्थ” कहा जाता है। सीधे शब्दों में कहा जाये तो गुरु गोबिंद सिंह जी ने रचना की और खालसे ने सम्पादना की। दसम ग्रन्थ का सत्कार सारी सिख कौम करती है।

दसम ग्रंथ की वानियाँ जैसे की जाप साहिब, तव परसाद सवैये और चोपाई साहिब सिखों के रोजाना सजदा, नितनेम, का हिस्सा है और यह वानियाँ खंडे बाटे की पहोल, जिस को आम भाषा में अमृत छकना कहते हैं, को बनाते वक्त पढ़ी जाती हैं। तखत हजूर साहिब, तखत पटना साहिब और निहंग सिंह के गुरुद्वारों में दसम ग्रन्थ का गुरु ग्रन्थ साहिब के साथ परकाश होता है और रोज़ हुक्मनामे भी लिया जाता है।

              दसम ग्रन्थ में दर्ज बानियाँ

दसम ग्रन्थ में गुरु गोबिंद सिंह जी की निम्लिखित वाणी दर्ज हैं:

जाप साहिब अकाल उसतति बचित्र नाटक चंडी चरित्र उक्ति बिलास चंडी चरित्र भाग दूसरा चंडी की वार ज्ञान परबोध चौबीस अवतार ब्रह्मा अवताररूद्र अवतार शब्द हजारे ३३ सवैये सवैये शास्त्र नाम माला अथ पख्यान चरित्र लिख्यते ज़फरनामा हिकायतें

नीचे चंडी चरित्र का प्रसिद्ध शबद देखिये। इसमें गुरुजी चण्डी की स्तुति करते हुए उनसे वरदान मांगते हैं कि मैं कभी भी शुभ कर्मों को करने से पीछे न हटूँ। यह शबद ब्रजभाषा में है।

देह सिवा बरु मोहि इहै सुभ करमन ते कबहूं न टरु

न डरों अरि सो जब जाइ लरों निसचै करि अपुनी जीत करु  ॥

अरु सिख हों आपने ही मन कौ इह लालच हउ गुन तउ उचरों।

जब आव की अउध निदान बनै अति ही रन मै तब जूझ मरु॥

                         अर्थ

हे शिवा (परम् पिता परमात्मा)! मुझे यह वर दें कि मैं शुभ कर्मों को करने से कभी भी पीछे न हटूँ।

जब मैं युद्ध करने जाऊँ तो शत्रु से न डरूँ और युद्ध में अपनी जीत पक्की करूँ।

और मैं अपने मन को यह सिखा सकूं कि वह इस बात का लालच करे कि आपके गुणों का बखान करता रहूँ।

जब अन्तिम समय आये तब मैं रणक्षेत्र में युद्ध करते हुए मरूँ।

सतगुर गोबिंद सिंह के ऊपर गुरमत विचारधारा का असर बचपन से ही था। गुरमत विचारधारा के साथ साथ उन्होंने अनेक भाषाओँ का ज्ञान प्राप्त किया और वेद, पुराण, उपनिषद, कुरान, शास्त्रों और अन्य धर्मो के ग्रन्थों को भी पढ़ा समझा।

पोंटा साहिब में गोबिंद सिंह ने रचना का कार्य शुरू किया। पूर्व सत्गुरुओं की वाणी का निचोड़, सतगुर गोबिंद सिंह जी ने जाप साहिब बानी में ढाला, जिसमे निरंकार के अनेक नाम लिखे। फिर अकाल पुरख की उसतति में बानी लिखी। आनंदपुर साहिब में, बचित्र नाटक रचना, में गुरु साहिब ने अपनी ज़िन्दगी के कुछ अंश लिखे और प्रथम सत्गुरुओं की और अपनी आत्मिक वंशावली का ज़िक्र किया।

चंडी को “आदि शक्ति” रूप में समझा और इस्त्री एवम मूर्ती रूप की मान्यता को खत्म करने के लिए चंडी चरित्र नामक चार रचनाए की जो दसम ग्रंथ में दर्ज हैं। एक रचना मारकंडे पुराण को आधार बना कर किया। यही नहीं, उस समे के पंडित/विदवान नीची जाती को ज्ञान नहीं देते थे, इस चीज़ को म्दते नजर रखते हुए, विष्णु, ब्रह्मा और रूद्र के अवतारों की कथा सतगुर ने पोंटा साहिब में लिखी और कुछ आनंदपुर साहिब में लिखी और इन कथाओं को गुरमत के दृष्टिकोण में सांचा। इन कारणों के चलते पहाड़ी राजे (क्षत्रिय) और ब्रह्मिन, सतगुर गोबिंद सिंह से इर्षा करने लग पढ़े और सरकार को उन के खिलाफ भडकाना शुरू कर दिया। कटड़ मुसलमानों को भी पता चला की गोबिंद सिंह ने अपनी वाणी में मुसलमानों के ऊपर भी टिप्णी की है वो भी खिलाफ हो गए।

अथ पख्यान चरित्र लिख्यते में चतुर महिलाओं और पुरुषों के चरित्र लिखे की कैसे यह संसार इर्षा, द्वेष, काम और अन्य विकारों से ग्रसित है। यह वाणी आनंदपुर साहिब में समाप्त की। औरंगजेब को उसकी सचाई का ज्ञान गुरु साहिब ने ज़फरनामा में दिलाया की वेह एक बुधिमान राजा नहीं है और न्याय करने में सक्षम नहीं है यही नहीं वो कुरान शरीफ की झूटी कसमे खाना वाला गैर मुसलमान है। यह पत्र सतगुर ने दीना, मालवा पंजाब में लिखा। इसके इलावा शास्त्र नाम माला में शस्त्रों को अध्यात्मिक शैली में सींचा और ३३ सवैये में रस्मो और मान्यताओं पर चोट मारी।

अपनी रचनाओ की पोथियाँ बनाई और लिखारिओं ने इन रचनाओ की कई नकले तैयार कीं और आम संगत में यह रचनाए फ़ैल गईं। तद पश्चात आनंदपुर की जंगचमकौर की जंगमुक्तसर की जंग और बहादुर शाह की मदत के बाद हजुर साहिब, नांदेड में अपने प्रिय घोड़े बाज सहित सचखंड चले गये

बाद में उन की धर्म पत्नी माता सुन्दरी के कहने पर भाई मनी सिंह खालसा और अन्य खालसा साथियों ने गुरु साहिब की पोथियों को इकठा कर एक सांचे में ढाला जिसको आज दसम ग्रंथ कहा जाता है।

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