इतिहास गुरुद्वारा ननकाना साहिब पाकिस्तान
ननकाना साहिब, पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित एक शहर है। इसका वर्तमान नाम सिखों के पहले गुरू गुरू नानक देव जी के नाम पर पड़ा है। इसका पुराना नाम ‘राय-भोई-दी-तलवंडी’ था। यह लाहौर से ८० किमी दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। इसकी जनसंख्या ६०,००० है। चूंकि यह स्थान गुरू नानक देव का जन्मस्थान है, यह सिखों का पवित्र ऐतिहासिक स्थान (तीर्थ) है। यह विश्व भर के सिखों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। यहाँ का गुरुद्वारा साहिब बहुत प्रसिद्ध है।
महाराजा रणजीत सिंह ने गुरु नानकदेव के जन्म स्थान पर गुरुद्वारा का निर्माण कराया था।
गुरु नानक जी का जन्म स्थान होने के कारण यह स्थान सिख मत के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। यहां भव्य एवं दिव्य गुरुद्वारा है। गुरुग्रंथ साहिब के प्रकाश स्थान के चारों ओर लम्बी चौड़ी परिक्रमा है। गुरुग्रंथ साहिब को मत्था टेककर श्रद्धालु इसी परिक्रमा में बैठकर शबद-कीर्तन का आनन्द लेते हैं। परिक्रमा में गुरु नानकदेव जी से संबंधित कई सुन्दर पेंटिग लगी हुई हैं। ननकाना साहिब में सुबह तीन बजे से ही श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है। रंग-बिरंगी रोशनियों से जगमग करता ननकाना साहिब एक स्वर्गिक नजारा प्रस्तुत करता है। पवित्र सरोवर में स्नान करने वालों का सैलाब उमड़ पड़ता है। रागी साहिबान द्वारा गुरुवाणी के शबद कीर्तन का प्रवाह रात तक चलता रहता है। हॉल में बैठकर श्रद्धालु लंगर छकते हैं। पहले पंगत फिर संगत की शानदार प्रथा ढेरों गुण समेटे हुए है।
गुरु पर्व पर निराली छटा
दुनियाभर से हजारों हिन्दू, सिख गुरु पर्व से कुछ दिन पहले ननकाना साहिब पहुंचते हैं और दस दिन यहां रहकर विभिन्न समारोहों में भाग लेते हैं। शानदार नगर कीर्तन निकाला जाता है। यात्रियों के ठहरने के लिए यहां कई सराय हैं। यह पाकिस्तान के सबसे तेज गति से विकसित होने वाले स्थानों में से एक है। गुरु नानकदेव के जन्म के समय इस जगह को ‘रायपुर‘ के नाम से भी जाना जाता था। उस समय रायबुलार इस इलाके का शासक था और बाबा नानक के पिता महता कालू उसके कर्मचारी थे। गुरु नानकदेव की आध्यात्मिक रुचियों को सबसे पहले उनकी बहन नानकी और रायबुलार भट्टी ने ही पहचाना। रायबुलार ने तलवंडी शहर के आसपास की 20 हजार एकड़ जमीन गुरु नानकदेव को उपहार में दी थी, जिसे ‘ननकाना साहिब’ कहा जाने लगा।
ननकाना साहिब के आसपास ‘गुरुद्वारा जन्मस्थान’ सहित नौ गुरुद्वारे हैं। ये सभी गुरु नानकदेव जी के जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलुओं से संबंधित हैं। जिस स्थान पर नानकजी को पढ़ने के लिए पाठशाला भेजा गया, वहां आज पट्टी साहिब गुरुद्वारा शोभायमान है।
इतिहास
मूल रूप से, इलाके की स्थापना राजा वैराट नामक एक हिंदू शासक ने की थी और मूल रूप से इसका नाम रायपुर था लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप पर इस्लामी आक्रमणों के दौरान इसे नष्ट कर दिया गया था । बाद में, पहली बस्ती के स्थल पर एक पुनर्निर्मित टाउनशिप की स्थापना दिल्ली सल्तनत के शासन के दौरान राय भोई द्वारा की गई थी , जो भाटी स्टॉक के राजपूत थे , जिनके हिंदू पूर्वज सूफीवाद के प्रभाव के कारण इस्लाम में परिवर्तित हो गए थे , और इस तरह उन्हें राय-भोई-दी-तलवंडी के रूप में जाना जाता था। उनके परपोते राय बुलार भट्टी ने, गुरु नानक के जन्म के बाद इसका नाम बदलकर ‘ननकाना साहिब’ रख दिया। गुरुद्वारा ननकाना साहिब , मूल रूप से सिखों द्वारा मुगल काल के दौरान लगभग 1600 ई. में बनाया गया था , जिसे 1819-20 ई . में जियान-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह
अकाली आंदोलन के दौरान , 20 फरवरी 1921 को, ननकाना साहिब में गुरुद्वारे के उदासी महंत (पादरी) नारायण दास ने अपने आदमियों को अकाली प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिससे ननकाना नरसंहार हुआ । गोलीबारी की व्यापक रूप से निंदा की गई, और इस ऐतिहासिक जनम स्थान गुरुद्वारे का नियंत्रण सिखों को वापस मिलने तक आंदोलन चलाया गया। फिर 1930 और 1940 के दशक में सिखों ने और इमारतें और अधिक वास्तुशिल्प डिजाइन जोड़े।
by-malkeet singh chahal