इतिहास गुरुद्वारा टाली साहिब पखों के पंजाब
पहले पातशाह गुरू नानक देव जी के सुपत्र बाबा श्री चंद जी द्वारा जिस स्थान पर भक्ती की गई थी, अब उस स्थान पर गढ़शंकर रोड पर तपोस्थान बाबा श्री चंद जी का गुरूद्वारा टाहली साहिब संगत की तरफ से स्थापित किया गया है। बताया जाता है कि बाबा श्री चंद जी ने 1635 में यहां आकर तपस्या की थी व यहां पर धूनी रमाई थी। तभी से ही श्रद्दालुओं की तरफ से यहां बाबा जी का धूना रमाया हुआ है। सदियों से ही उस स्थान पर टाहली का पेड़ सुशोभित है।
बताया जाता है कि जब बाबा जी यहां आए थे तब अन्य संगत के साथ साथ नवांशहर के हीर परिवार की ओर से भी बाबा जी की सेवा की गई थी, तभी से आज तक हीर परिवार की पीढ़ी दर पीढ़ी की तरफ से यहां सेवा की जा रही है। गुरुद्वारा साहिब में यहां बाबा जी की धूनी के साथ ही बाबा जी की मूर्ति स्थापित की गई है, जबकि यहीं पर कुछ हटकर अलग स्थान पर श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश किया गया है। रोजाना सुबह व शाम पाठ होता है व विधिवत रूप से बाबा जी की आर्ति की जाती है।
श्री चंद प्रबंधक कमेटी के सेक्रेटरी बताते हैं कि क्षेत्र भर में गुरूद्वारा साहिब जी की मान्यता है। वे बताते हैं कि सन 1635 में जब बाबा श्री चंद जी महाराज इस स्थान पर आए और अपने साथियों के साथ उन्होंने यहां पर तपस्या की। उनकी सेवा में आने वाली संगत ने बाबा जी से पूछा कि आप के जाने के बाद संगत आपके रूप में किसका दर्शन करेगी, तो बाबा जी ने पास खड़े टाहली से दातुन कर बोले, आप संगत टाली में मेरा स्वरूप पाओगे। जिसके बाद संगत की ओर से धीर धीरे यहां पर पहले तपोस्थान की छंटी इमारत बनाई और अब यहां नई इमारत बनाई गई जिस घर में बाबा श्रीचंद व् उनकी माता जी रहते थे वो प्राचीन घर व् कुआ आज भी विराजमान हे