इतिहास श्री गुरुग्रंथ साहिब जी
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पोथी साहिब श्री गुरुनानकदेव जी
आदिग्रंथ श्री गुरु अर्जुनदेव जी
लिखारी भाई गुरदास जी
पहिला प्रकाश 16-08-1604 दरबार साहिब श्री अम्रतसर
पहिले ग्रंथी साहिबान बाबा बुढा जी
ग्रंथसाहिब श्री गुरु गोबिंद सिंघ जी दमदमा साहिब में
लिखारी भाई मणी सिंघ जी
गुरु की उपादी 04-10-1708 नादेड हजूर साहिब
पवित्र अंग 1430
भाषा गुरमुखी
राग 31
बानी 6 गुरु साहिबान 4 सिख शख्शियत 15 भगत 11 भट्ट
1-गुरु नानकदेव जी 974 शब्द 2-गुरु अंगददेव जी 62 स्लोक
3-गुरु अमरदास जी 907 शब्द 4-गुरु रामदास जी 679 शब्द
5-गुरु अर्जुनदेव जी 2218 शब्द 6-गुरु तेग बहादर जी 116 शब्द
1-बाबा सुंदर जी 06 शब्द 2-भाई बलवंड जी जी 05 शब्द
3-भाई मर्दाना जी 03 स्लोक 4-भाई सत्ता जी 03 शब्द
15 भगत साहिबान भट्ट साहिबान
1-भगत नामदेव जी 61 शब्द 1-जालप जी स्वईए 5
2-भगत रविदास जी 40 शब्द 2-कीरत जी स्वईए 8
3- भगत कबीर जी 541 शब्द 3-भीखा जी स्वईए 2
4-भगत बाबा फरीद जी 116 शब्द 4-सल्ह जी स्वईए 3
5- भगत रामान्द जी 01 शब्द 5-भल्ह जी स्वईए 1
6- भगत बेनी जी के 03 शब्द 6-नल जी स्वईए 16
7भगत सधना जी 01 शब्द 7-ग्यांद जी स्वईए 13
8- भगत भीखन जी 02 शब्द 8-मथुरा जी स्वईए 14
9 भगत परमानद जी 01 शब्द 9- बल जी स्वईए 5
10- भगत सेन जी 01 शब्द 10- हरबंस जी स्वईए 2
11- भगत धन्ना जी 04 शब्द 11-कलसहार जी स्वईए 54
12- भगत पीपा जी 01 शब्द
13 भगत सूरदास जी 01 शब्द
14-भगत जयदेव जी 02 शब्द
15-भगत त्रिलोचन जी 04 शब्द
श्री गुरुग्रंथ साहिब में निम्न कुल 31 राग हे
1-सिरी राग गाईन समा शाम नु अंग 14 से 93
2-मांझ राग गाईन समा चोथा पहर अंग 94 से 150
3-गाउडी राग गाईन समा कोई भी अंग 151 से 346
4-आसा राग गाईन समाअमृत वेले अंग 347 से 488
5-गुजरी राग गाईन समा दोपहर वेले अंग 489 से 526
6-देव गंधारी राग गाईन समा दूसरा पहीर अंग 527 से 536
7-बिहागडा राग गाईन समा पहिला पहीर रात अंग 537 से 556
8-वडहंस राग गाईन समा दोपहर वेले अंग 557 से 594
9-सोरठ राग गाईन समा अधी रात अंग 594 से 659
10-धनासरी राग गाईन समा शाम वेले अंग 660 से 695
11-जेत सरी राग गाईन समा शाम अंग 696 से 710
12-टोडी राग गाईन समा दूजा पहर दिन अंग 711 से 718
13-बेराडी राग गाईन समा दिन दी समाप्ति अंग 719 से 720
14-तिलंग राग गाईन समा शाम वेले अंग 721 से 727
15-सूही राग गाईन समा दूजा पहर अंग 728 से 794
16-बिलावल राग गाईन समा दूजा पहर सवेर अंग 795 से 858
17-गोड राग गाईन समा दोपहर अंग 859 से 875
18-रामकली राग गाईन समा दोपहर वेले अंग 876 से 974
19-नट नारायण राग गाईन समा चोथा पहर दिन अंग 975 से 984
20-माली गाउड़ा राग गाईन समा पहिला पहर अंग 984 से 988
21-मारू राग गाईन समा तीजा पहर दिन अंग 989 से 1106
22-तुखारी राग गाईन समा चोथा पहर दिन अंग 1107 से 1117
23-केदार राग गाईन समा दूजा पहर रात अंग 1118 से 1124
24-भेरओ राग गाईन समा सवेर वेले अंग 1125 से 1167
25-बसंत राग गाईन समा बसंत रुते अंग 1168 से 1196
26-सारंग राग गाईन समा तीजा पहर दोपहर अंग 1197 से 1253
27-मलार राग गाईन समा तीजा पहर रात अंग 1254 से 1293
28-कांता राग गाईन समा दूजा पहर रात अंग 1294 से 1318
29-कलियान राग गाईन समा पहिला पहर रात अंग 1319 से 1326
30-प्रभाती राग गाईन समा अम्रत वेला अंग 1327 से 1351
31-जेजा वंती राग गाईन समा दूजा पहर रात अंग 13 52 से 1353
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में परमात्मा के अलग अलग नामों से वेरवा
1-हरी 8344 2-राम 2533 3-प्रभु 137
4-गोपाल 491 5-गोबिंद 475 6-परमात्मा 324
7-करता 228 8-ठाकर 216 9-दाता 151
10-परमेसर 139 11-मुरारी 97 12-नारायण 88
13-अंतरजामी 61 14-जगदीश 60 15-सतनाम 58
16-मोहन 54 17-अल्ला 46 18-भगवान 30
19-निरंकार 28 20-वाहिगुरू 13 21-वाहगुरू 03
श्री गुरु ग्रंथ साहिब किसी भी धर्म जाती को तोड़ने की नही जबकि जोड़ने की बात करता हे गुरु ग्रंथ साहिब में किसी प्रकार का भेदभाव नही लिखा गया हे श्री गुरुग्रन्थ साहिब जी में सिर्फ सिख गुरुओं की बानी ही नहीं जबकि 30 अन्य सन्तो और अलंग अलग धर्म के भक्तों की वाणी भी सम्मिलित है। इसमे जहां रामानद जी और परमानंदजी जैसे ब्राह्मण भक्तों की वाणी है, वहीं जाति-पांति के आत्महंता भेदभाव से ग्रस्त तत्कालीन हिंदु समाज में हेय समझे जाने वाली जातियों के प्रतिनिधि दिव्य आत्माओं जैसे भगत कबीरजी , भगत रविदास जी ,भगत नामदेव जी भगत सैण जी, भगत सघना जी, भगत धन्ना जी की वाणी भी सम्मिलित है। पांचों वक्त नमाज पढ़ने में विश्वास रखने वाले भगत शेख फरीद के श्लोक भी गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं। अपनी भाषायी अभिव्यक्ति, दार्शनिकता, संदेश की दृष्टि से श्री गुरुग्रन्थ साहिब अद्वितीय हैं। इनकी भाषा की सरलता, सुबोधता, सटीकता जहां जनमानस को आकर्षित करती है। वहीं संगीत के सुरों व 31 रागों के प्रयोग ने आत्मविषयक गूढ़ आध्यात्मिक उपदेशों को भी मधुर व सारग्राही बना दिया है।
श्री गुरुग्रन्थ साहिब में उल्लेखित दार्शनिकता कर्मवाद को मान्यता देती है। गुरुवाणी के अनुसार व्यक्ति अपने कर्मो के अनुसार ही महत्व पाता है। समाज की मुख्य धारा से कटकर संन्यास में ईश्वर प्राप्ति का साधन ढूंढ रहे साधकों को गुरुग्रन्थ साहिब सबक देता है। हालांकिश्री गुरुग्रन्थ साहिब में आत्मनिरीक्षण, ध्यान का महत्व स्वीकारा गया है, मगर साधना के नाम पर परित्याग, अकर्मण्यता, निश्चेष्टता का गुरुवाणी विरोध करती है। गुरुवाणी के अनुसार ईश्वर को प्राप्त करने के लिए सामाजिक उत्तरदायित्व से विमुख होकर जंगलों में भटकने की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर हमारे हृदय में ही है, उसे अपने आन्तरिक हृदय में ही खोजने व अनुभव करने की आवश्यकता है। गुरुवाणी परमात्मा से उपजी आत्मिक शक्ति को लोककल्याण के लिए प्रयोग करने की प्रेरणा देती है। मधुर व्यवहार और विनम्र शब्दों के प्रयोग द्वारा हर हृदय को जीतने की सीख दी गई है।

श्री गुरु ग्रंथ साहिब में प्रथम पाँच गुरुओं नवें गुरु और पन्द्रह भगतों ग्यारह भट्टों बाबा सुंदर जी भाई मर्दाना जी दो भाई बलवंड जी सत्ता जी सहित कुल 36 महापुरुष की बानी दर्ज हैं। ऐसा कोई संग्रह संभवत: गुरु नानकदेव के समय से ही तैयार किया जाने लगा था और गुरु अमरदास जी के पुत्र मोहन जी के यहाँ प्रथम चार गुरुओं के पत्रादि सुरक्षित भी रहे, जिन्हें पाँचवें गुरु ने उनसे लेकर पुन: क्रमबद्ध किया तथा उनमें अपनी ओर कुछ ‘भगतों’ की भी बानियाँ सम्मिलित करके सबको भाई गुरुदास जी द्वारा गुरुमुखी में लिपिबद्ध करा दिया।गुरु गोबिंद सिंघ जी ने अंतर ध्यान होकर मुख जुबानी श्री गुरु ग्रंथ साहिब को दमदमा साहिब में बैठकर भाई मणी सिंघ से लिखवाकर सम्पूर्ण किया व् हजूर साहिब नादेड में गुरु की उपादी दी गई
गुरुनानक देव जी द्वारा अलग अलग किताबों में बानी लिखी गई उसे पोथी साहिब कहा जाता था गुरु अर्जुनदेव जी ने उन पोथियों से बानी एकत्रित कर उसे ग्रंथ साहिब का रूप दिया जिसे आदिग्रंथ कहा जाता था गुरु गोबिंद सिंघ द्वारा गुरु की उपादी दी गई तभी से श्री गुरु ग्रंथ साहिब कहा जाने लगा सब गुरु गोबिंद सिंघ जी ने सब सिखों को हुक्म दिया की आज के बाद श्री गुरु ग्रंथ साहिब ही सिखों के गुरु होंगे
“आज्ञा भई अकाल की तबे चलाओ पंथ सब सीखन को हुक्म हे गुरु मानओ ग्रंथ”
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