History Takht Sri Darbar Sahib Amritsar@SH#EP=94

 

                            इतिहास तख्त श्री  दरबार साहिब अमृतसर

                                             By-janchetna.in

       दरबार साहिब अमृतसर केसे पहुंचे

                                         वायु मार्ग

अमृतसर में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का हवाई अड्डा है। आप भारत के टियर 1 और टियर 2 शहरों से उड़ान पकड़ सकते हैं और साल के किसी भी समय अमृतसर पहुंच सकते हैं। आप आसपास के शहरों से कार से भी यात्रा कर सकते हैं और एक खूबसूरत सड़क यात्रा का आनंद ले सकते हैं।

आप अमृतसर में शीर्ष कार रेंटल कंपनियों की सूची से कैब ले सकते हैं या मामूली शुल्क पर शहर के किसी भी स्थान से इस प्रसिद्ध गुरुद्वारे तक यात्रा करने के लिए आप रिक्शा या ऑटो भी ले सकते हे

                                    रेल व सड़क मार्ग

अमृतसर दिल्ली से लगभग 500 किलोमीटर दूर, राष्ट्रीय राजमार्ग १ पर स्थित है। आसपास के सभी राज्यों के सभी प्रमुख नगरों से अमृतसर तक की बस सेवा (साधारण व डीलक्स) उपलब्ध है। राष्ट्रीय राजमार्ग १ पर किसी भी स्थान से २४ घंटे बसें चलती रहती हैं।

अमृतसर रेल मार्ग द्वारा भारत के सभी प्रमुख नगरों से जुड़ा है। पुरानी दिल्ली और नई दिल्ली से अमृतसर शान-ए-पंजाब या शताब्दी ट्रेन से पांच से सात घंटे में अमृतसर पहुंचा जा सकता है। अमृतसर स्टेशन से रिक्शा करके गुरुद्वारे पहुंचा जा सकता है।

                                     इतिहास

श्री हरिमंदिर साहिब अमृतसर सिख धर्म का प्रमुख धार्मिक स्थल है| जो अमृत सरोवर के बीच सुभायेमान हे श्री हरिमंदिर साहिब आलौकिक दृश्य पेश करता है| देश विदेश में बैठे हर सिख की इच्छा रहती है श्री हरिमंदिर साहिब के दर्शन करने के लिए आए  अमृत सरोवर की खुदाई चौथे गुरु रामदास जी ने 1577 ईसवीं में  करवाई थी  पांचवे गुरु अर्जुन देव जी ने 1588 ईसवीं को अमृत सरोवर को पक्का करवाया| छठे गुरु हरगोबिन्द साहिब जी ने श्री हरिमंदिर साहिब के सामने 1606 ईसवीं में अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया| शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने पुरे हरिमंदिर साहिब पर सोना  चढ़ाया और परिक्रमा में संगमरमर लगवाया| सोने की चमक की वजह से इसको गोलडन टेम्पल का नाम भी दिया गया| श्री हरिमंदिर साहिब में हर रोज एक लाख के करीब श्रदालु दर्शन करने के लिए आते हैं| पंजाब में सबसे ज्यादा पर्यटक अमृतसर में ही आते हैं|

श्री हरिमन्दिर साहिब सिख धर्मावलंबियों का सबसे पावन धार्मिक स्थल या सबसे प्रमुख गुरुद्वारा है जिसे दरबार साहिब या स्वर्ण मन्दिर भी कहा जाता है। यह भारत के राज्य पंजाब के अमृतसर शहर में स्थित है और यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण है। पूरा अमृतसर शहर स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ बसा हुआ है। स्वर्ण मंदिर में हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। अमृतसर का नाम वास्तव में उस सरोवर के नाम पर रखा गया है जिसका निर्माण गुरु राम दास ने स्वयं अपने हाथों से किया था। यह गुरुद्वारा इसी सरोवर के बीचोबीच स्थित है। इस गुरुद्वारे का बाहरी हिस्सा सोने का बना हुआ है, इसलिए इसे ‘स्वर्ण मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है।

सिखों के चौथे गुरू रामदास जी ने इसकी नींव रखी थी। गुरुजी ने लाहौर के एक सूफी सन्त मियां मीर से दिसम्बर, १५८८ में इस गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी। 

स्वर्ण मंदिर को कई बार नष्ट किया जा चुका है। लेकिन भक्ति और आस्था के कारण हिन्दूओं और सिक्खों ने इसे दोबारा बना दिया। इसे दोबारा १७वीं सदी में भी महाराज सरदार जस्सा सिंह अहलुवालिया द्वारा बनाया गया था। जितनी बार भी यह नष्ट किया गया है और जितनी बार भी यह बनाया गया है उसकी हर घटना को मंदिर में दर्शाया गया है। अफगा़न हमलावरों ने १९वीं शताब्दी में इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया था। तब महाराजा रणजीत सिंह ने इसे दोबारा बनवाया था और इसे सोने की परत से सजाया था। सन 1984 में हिन्दुस्तान के टुकड़े करने की मंशा रखने वाले एवं सैकड़ों निर्दोष हिन्दू-सिखों के हत्यारे भिंडरावाले ने भी आस्था के केंद्र हरमिंदर साहिब पर कब्जा कर लिया था और इसे अपने ठिकाने के रूप में प्रयोग किया। शुरुआत में आस्था का सम्मान करते हुए सुरक्षा एजेंसियों ने अंदर घुसने से परहेज किया लेकिन 10 दिन तक चले इस संघर्ष में अंततः सेना को अंदर घुसकर ही भिंडरावाले को खत्म करना पड़ा। भिंडरावाले और उसके साथियों के पास से पाकिस्तान निर्मित सैकड़ों भारी हथियार जब्त किए गए।

लगभग ४०० वर्ष पुराने इस गुरुद्वारे का नक्शा खुद गुरु अर्जुन देव जी ने तैयार किया था। यह गुरुद्वारा शिल्प सौंदर्य की अनूठी मिसाल है। इसकी नक्काशी और बाहरी सुंदरता देखते ही बनती है। गुरुद्वारे के चारों ओर दरवाजे हैं, जो चारों दिशाओं (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण) में खुलते हैं। उस समय भी समाज चार जातियों में विभाजित था और कई जातियों के लोगों को अनेक मंदिरों आदि में जाने की इजाजत नहीं थी, लेकिन इस गुरुद्वारे के यह चारों दरवाजे उन चारों जातियों को यहां आने के लिए आमंत्रित करते थे। यहां हर धर्म के अनुयायी का स्वागत किया जाता है।

श्री हरिमन्दिर साहिब परिसर में दो बड़े और कई छोटे-छोटे तीर्थस्थल हैं। ये सारे तीर्थस्थल सरोवर के चारों तरफ फैले हुए हैं। इस सरोवर को अमृत सरोवर और अमृत झील के नाम से भी जाना जाता है। पूरा स्वर्ण मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी दीवारों पर सोने की पत्तियों से नक्काशी की गई है। हरिमन्दिर साहिब में पूरे दिन गुरबाणी की स्वर लहरियां गूंजती रहती हैं। सिक्ख गुरु को ईश्वर तुल्य मानते हैं। स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने से पहले वह मंदिर के सामने सर झुकाते हैं, फिर पैर धोने के बाद सी‍ढ़ि‍यों से दरबार साहिब तक जाते हैं। सीढ़ि‍यों के साथ-साथ स्वर्ण मंदिर से जुड़ी हुई सारी घटनाएं और इसका पूरा इतिहास लिखा हुआ है। स्वर्ण मंदिर एक बहुत ही खूबसूरत इमारत है। इसमें रोशनी की सुन्दर व्यवस्था की गई है। मंदिर परिसर में पत्थर का एक स्मारक भी है जो, जांबाज सिक्ख सैनिकों को श्रद्धाजंलि देने के लिए लगाया गया है।

                     मुख्य द्वार पर बना घंटाघर,

श्री हरिमन्दिर साहि‍ब के चार द्वार हैं। इनमें से एक द्वार गुरु राम दास सराय का है। इस सराय में अनेक विश्राम-स्थल हैं। विश्राम-स्थलों के साथ-साथ यहां चौबीस घंटे लंगर चलता है, जिसमें कोई भी प्रसाद ग्रहण कर सकता है। श्री हरिमन्दिर साहिब में अनेक तीर्थस्थान हैं। इनमें से बेरी वृक्ष को भी एक तीर्थस्थल माना जाता है। इसे बेर बाबा बुड्ढा के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि जब स्वर्ण मंदिर बनाया जा रहा था तब बाबा बुड्ढा जी इसी वृक्ष के नीचे बैठे थे और मंदिर के निर्माण कार्य पर नजर रखे हुए थे।

                                     सरोवर

स्वर्ण मंदिर सरोवर के बीच में मानव निर्मित द्वीप पर बना हुआ है। पूरे मंदिर पर सोने की परत चढ़ाई गई है। यह मंदिर एक पुल द्वारा किनारे से जुड़ा हुआ है। सरोवर में श्रद्धालु स्नान करते हैं। मंदिर से 100 मी. की दूरी पर स्वर्ण जड़ि‍त, अकाल तख्त है। इसमें एक भूमिगत तल है और पांच अन्य तल हैं। इसमें एक संग्रहालय और सभागार है। यहाँ पर सरबत खालसा की बैठकें होती हैं। सिक्ख पंथ से जुड़ी हर मसले या समस्या का समाधान इसी सभागार में किया जाता है।

स्वर्ण मंदिर परिसर में स्थित सभी पवित्र स्थलों की पूजा स्वरूप भक्तगण अमृतसर के चारों तरफ बने गलियारे की परिक्रमा करते हैं। इसके बाद वे अकाल तख्त के दर्शन करते हैं। अकाल तख्त के दर्शन करने के बाद श्रद्धालु पंक्तियों में स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करते हैं।

यहाँ दुखभंजनी बेरी नामक एक स्थान भी है। गुरुद्वारे की दीवार पर अंकित किंवदंती के अनुसार कि एक बार एक पिता ने अपनी बेटी का विवाह कोढ़ ग्रस्त व्यक्ति से कर दिया। उस लड़की को यह विश्वास था कि हर व्यक्ति के समान वह कोढ़ी व्यक्ति भी ईश्वर की दया पर जीवित है। वही उसे खाने के लिए सब कुछ देता है। एक बार वह लड़की शादी के बाद अपने पति को इसी तालाब के किनारे बैठाकर गांव में भोजन की तलाश के लिए निकल गई। तभी वहाँ अचानक एक कौवा आया, उसने तालाब में डुबकी लगाई और हंस बनकर बाहर निकला। ऐसा देखकर कोढ़ग्रस्त व्यक्ति बहुत हैरान हुआ। उसने भी सोचा कि अगर में भी इस तालाब में चला जाऊं, तो कोढ़ से निजात मिल जाएगी।

उसने तालाब में छलांग लगा दी और बाहर आने पर उसने देखा कि उसका कोढ़ नष्ट हो गया। यह वही सरोवर है, जिसमें आज हर मंदिर साहिब स्थित है। तब यह छोटा सा सरोवर था, जिसके चारों ओर बेरी के पेड़ थे। सरोवर का आकार तो अब पहले से काफी बड़ा हो गया है, तो भी उसके एक किनारे पर आज भी बेरी का पेड़ है। यह स्थान बहुत पावन माना जाता है। यहां भी श्रद्धालु माथा टेकते हैं।

परंपरा यह है कि यहाँ आने वाले श्रद्धालुजन सरोवर में स्नान करने के बाद ही गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं। जहां तक इस विशाल सरोवर की साफ-सफाई की बात है, तो इसके लिए कोई विशेष दिन निश्चित नहीं है। लेकिन इसका पानी लगभग रोज ही बदला जाता है। इसके लिए वहां फिल्टरों की व्यवस्था है। इसके अलावा पांच से दस साल के अंतराल में सरोवर की पूरी तरह से सफाई की जाती है। इसी दौरान सरोवर की मरम्मत भी होती है। इस काम में एक हफ्ता या उससे भी ज्यादा समय लग जाता है। यह काम यानी कारसेवा (कार्य सेवा) मुख्यत: सेवादार करते हैं, पर उनके अलावा आम संगत भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है।

                                  अकाल तख्त

गुरुद्वारे के बाहर दाईं ओर अकाल तख्त है। अकाल तख्त का निर्माण सन 1609 में किया गया था। यहाँ दरबार साहिब स्थित है। उस समय यहाँ कई अहम फैसले लिए जाते थे। संगमरमर से बनी यह इमारत देखने योग्य है। इसके पास शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का कार्यालय है, जहां सिखों से जुड़े कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं।

                     लंगर सेवा

गुरु का लंगर में गुरुद्वारे आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खाने-पीने की पूरी व्यवस्था होती है। यह लंगर श्रद्धालुओं के लिए 24 घंटे खुला रहता है। खाने-पीने की व्यवस्था गुरुद्वारे में आने वाले चढ़ावे और दूसरे कोषों से होती है। लंगर में खाने-पीने की व्यवस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समि‍ति‍ की ओर से नियुक्त सेवादार करते हैं। वे यहाँ आने वाले लोगों (संगत) की सेवा में हर तरह से योगदान देते हैं। अनुमान है कि करीब 40 हजार लोग रोज यहाँ लंगर का प्रसाद ग्रहण करते हैं।

                                 ठहरने की व्यवस्था

दरबार साहिब में इंटर होते ही अनेक सरा(निवास स्थान) बनी हुई हे जिनमे लोकर(गठड़ी घर)होल व् कमरे बने हुये हे पहले यहा निशुल्क कमरे मिलते थे परंतु अब एक दिन का पांच सो रूपये किराया कर दिया गया हे दरबार साहिब के पास ही होटल में भी आपको पांच सो में आसानी से कमरा मिल जायेगा

         अमृतसर में गुरुद्वारे एवं अन्य दर्शनीय स्थल

श्री हरिमंदिर साहि‍ब के पास गुरुद्वारा बाबा अटल और गुरुद्वारा माता कौलाँ है। इन दोनों गुरुद्वारों में पैदल पहुंचा जा सकता है। इसके पास ही गुरु का महल नामक स्थान है। यह वही स्थान है जहाँ स्वर्ण मंदिर के निर्माण के समय गुरु साहब रहते थे। गुरुद्वारा बाबा अटल नौ मंजिला इमारत है। यह अमृतसर शहर की सबसे ऊँची इमारत है। यह गुरुद्वारा गुरु हरगोबिंद सिंह जी के पुत्र की याद में बनवाया गया था, जो केवल नौ वर्ष की उम्र में काल को प्राप्त हुए थे। गुरुद्वारे की दीवारों पर अनेक चित्र बनाए गए हैं। यह चित्र गुरु नानक देव जी की जीवनी और सिक्ख संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं। इसके पास माता कौलाँ जी गुरुद्वारा है। यह गुरुद्वारा बाबा अटल गुरुद्वारे की अपेक्षा छोटा है। यह हरिमंदिर के बिल्कुल पास वाली झील में बना हुआ है। यह गुरुद्वारा उस दुखयारी महिला को समर्पित है जिसको गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने यहाँ रहने की अनुमति दी थी।

इसके पास ही गुरुद्वारा सारागढ़ी साहिब है। यह केसर बाग में स्थित है और आकार में बहुत ही छोटा है। इस गुरुद्वारे को 1902 ई.में ब्रिटिश सरकार ने उन सिक्ख सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाया था जो एंग्लो-अफ़गान युद्ध में शहीद हुए थे।

गुरुद्वारे के आसपास कई अन्य महत्वपूर्ण स्थान हैं। थड़ा साहिब, बेर बाबा बुड्ढा जी, गुरुद्वारा लाची बार, गुरुद्वारा शहीद बंगा बाबा दीप सिंह जैसे छोटे गुरुद्वारे स्वर्ण मंदिर के आसपास स्थित हैं। उनकी भी अपनी महत्ता है। नजदीक ही ऐतिहासिक जलियांवाला बाग है, जहां जनरल डायर की क्रूरता की निशानियां मौजूद हैं। वहां जाकर शहीदों की कुर्बानियों की याद ताजा हो जाती है।

गुरुद्वारे से कुछ ही दूरी पर भारत-पाक सीमा पर स्थित वाघा सीमा एक अन्य महत्वपूर्ण जगह है। यहां भारत और पाकिस्तान की सेनाएं अपने देश का झंडा सुबह फहराने और शाम को उतारने का आयोजन करती हैं। इस मौके पर परेड भी होती है।

              प्रकाशोत्सव

प्रकाशोत्सव अल सुबह ढाई बजे से आरंभ होता है, जब गुरुग्रंथ साहिब जी को सचखंड से गुरुद्वारे में लाया जाता है। संगतों का जत्था भजन-कीर्तन करते हुए गुरु ग्रंथ साहिब को पालकी में सजाकर गुरुद्वारे में लाते  है। रात के समय सुखासन के लिए गुरु ग्रंथ साहिब को सचखंड  में भी वापस भी इसी तरह लाया जाता है। कड़ाह प्रसाद (हलवा) की व्यवस्था भी 24 घंटे रहती है।

वैसे तो गुरुद्वारे में रोज ही श्रद्धालुओं की कतार लगी रहती है, लेकिन गर्मियों की छुट्टियों में ज्यादा भीड़ होती है। बैसाखी, लोहड़ी, गुरुनानक पर्व, शहीदी दिवस, संगरांद (संक्रांति‍) जैसे त्योहारों पर पैर रखने की जगह नहीं होती है। इसके अलावा सुखासन और प्रकाशोत्सव का नजारा देखने लायक होता है। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से अरदास करने से सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं।

                        गुरुद्वारा गुरु का महल अमृतसर

चौथे सिख गुरु रामदास जी ने 1573 ई. में एक साधारण झोपड़ी का निर्माण कराया जो गुरुद्वारा गुरु का महल बन गया।

यह इमारत, जो कभी गुरु रामदास का घर थी, एक गुरुद्वारे में बदल दी गई। सिखों के पवित्र  गुरु ग्रंथ साहिब को एक ऊंचे मंच पर इस तीन मंजिला में रखा गया है।

महल का निर्माण तीन स्तरों से होता है। गुरु लोग तहखाने में ध्यान करते थे, जो अब ध्यान स्थान के रूप में कार्य करता है। ऊपरी मंजिल पर समूह बैठने और कीर्तन के लिए जगह है। गुरु ग्रंथ साहिब को सबसे ऊपरी मंजिल पर रखा गया है।

भले ही इसे तुरंत स्थानांतरित कर दिया गया था, यह मामूली सी कुटिया अंततः सिख गुरुओं के प्रशासनिक केंद्र के रूप में जानी जाने लगी। यह छोटा सा घर वास्तव में एक महल में बदल गया क्योंकि इसे बाद के गुरुओं द्वारा विस्तारित और सुशोभित किया गया था।

 सिखों के चौथे गुरु रामदास जी ने 1573 में गुरुद्वारा गुरु का महल बनवाया था। इस स्थान पर, दस गुरुओं में से पांचवें गुरु अर्जन देव जी का विवाह हुआ था और उन्हें गुरु के रूप में नियुक्त किया गया था। वह गुरु राम दास जी के पुत्र और पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब का आधिकारिक संस्करण लिखने वाले पहले गुरु थे।

 गुरु अर्जन देव जी के पोते, बाबा अटल राय और श्री गुरु तेग बहादुर का जन्म यहीं हुआ था। गुरु तेग बहादुर के पिता श्री गुरु हरगोबिंद सिंह भी अस्थायी रूप से यहां रुके थे।

                   गुरुद्वारा गुरु का महल कैसे पहुंचें?

गुरुद्वारा श्री गुरु का महल अमृतसर जंक्शन से गुरु बाजार के पार 1.5 किलोमीटर दूर है, जो स्वर्ण मंदिर के करीब मुख्य मार्ग है। यह अपने स्थान और रेलवे स्टेशन से निकटता के कारण सुविधाजनक रूप से पहुँचा जा सकता है।

यदि आपने अभी तक गुरुद्वारा श्री गुरु का महल का दौरा नहीं किया है, तो पवित्र शहर अमृतसर की आपकी यात्रा अधूरी है। उत्कृष्ट सिख गुरु के घर को समय के साथ गुरुद्वारे में बदल दिया गया और सिख परंपरा में इसका स्पष्ट महत्व था।

                    निकटवर्ती अन्य गुरुद्वारा साहिब  

 1-सुल्तानपुर लोधी कपूरथला  

2-गोइंद्वल साहिब 

3-खडूर साहिब

4-दरबार साहिब तरनतारन  

5-गुरु का बाग अजनाला अमृतसर

6-बटाला

7-बाघा बोडर

8-गुरुद्वारा बीड़ बाबा बुड्डा साहिब 

9-गुरुद्वारा गुरु की बडाली

10-गुरुद्वारा सन साहिब

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