History Third Guru Amardas Ji @SH#EP=06

                                  इतिहास तीसरे गुरु अमरदास जी

                                      जन्म(प्रकाश)

                      (05 मई 1479=01 सितंबर 1574)

                                                   By-janchetna.in

गुरु अमरदास जी ने वैशाख शुक्ल एकादशी, संवत 1536 वि.(05 मई, 1479 ई.) को अमृतसर जिले के ‘बासरके’ गांव में पिता श्री तेजभान एवं माता लखमी जी के घर जन्म लिया। चार भाइयों में से सबसे बड़े गुरुजी खानदानी व्यापार एवं खेती में व्यस्त रहते। कामकाज के साथ-साथ उनका चित्त सदैव हरि सिमरन में रमा रहता था। आध्यात्मिक प्रवृत्ति के कारण ही लोग उन्हें ‘भक्त अमरदास’ कहते थे। वे वैष्णव मत के अनुयायी थे।

                                विवाह

 उनका विवाह 23 वर्ष की आयु में बीबी रामो के साथ हुआ। मोहन जी, मोहरी जी उनके दो पुत्र एवं बीबी दानी जी और बीबी भानी जी दो पुत्रियां थीं।

                              जीवनकाल

दूसरे गुरु श्री अंगद देव जी की सुपुत्री बीबी अमरो उनके भतीजे के साथ ब्याही हुई थी। एक बार अमृत बेला में उन्होंने बीबी अमरो से श्री गुरु नानक देव जी द्वारा रचित एक ‘शब्द’ सुना। वे शब्द से इतने प्रभावित हुए कि बीबी अमरो से पता पूछकर तुरंत दूसरे गुरु के चरणों में आ विराजे। उन्होंने 61 वर्ष की आयु में अपने से 25 वर्ष छोटे और रिश्ते में समधी लगने वाले गुरु अंगद देव जी को गुरु माना और 11 वर्षो  तक एकनिष्ठ भाव से गुरु की सेवा की। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर और सभी प्रकार से योग्य समझ कर दूसरे गुरु जी ने उन्हें गुरुगद्दी सौंप दी और वे 72 वर्ष की आयु में तीसरे गुरु श्री अमरदास बन गए।द्वितीय गुरु जी ने उन्हें व्यास नदी के तट पर एक नया नगर बसाने और सिख धर्म का प्रचार करने की आज्ञा दी। इस प्रकार गुरुगद्दी पर विराजमान होने के बाद 1552 ई. में ‘गोइंदवाल साहिब’ की स्थापना हुई। तीसरे गुरु ने सारे सिख समाज को 22 भागों में बांटकर 22 पीठ स्थापित किए, जिन्हें ‘मंजियां’ कहा गया। महिला धर्म प्रचारकों के लिए पृथक से ‘पीढि़यों’ की स्थापना हुई। गुरु जी ने समाज सुधार की ओर भी विशेष ध्यान दिया। भेदभाव, छुआछूत, जाति-पाति को समाप्त करने के उद्देश्य से गोइंदवाल साहिब में सांझी बावली का निर्माण कराया गया। उन्होंने एक पंगत  में बैठकर ‘लंगर छकने’ की प्रथा भी चलाई। मुगल बादशाह अकबर जब गुरु दर्शन हेतु गोइंदवाल साहिब आया, तो उसने भी पंगत में बैठ कर लंगर छका (चखा)। गुरु जी ने सती प्रथा को समाप्त करने में भी विशेष भूमिका निभाई। गुरु जी के दामाद चौथे गुरु श्री रामदास जी ने उनकी आज्ञा से ही ‘अमृतसर’ सरोवर एवं नगर की स्थापना की। गुरु साहिबान की बानी (वाणी) को संकलित करने का स्वप्न भी उन्होंने ही देखा था, जिसे बाद में उनके नाती पांचवें गुरु अर्जन देव जी ने ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ का संपादन करके पूरा किया। ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में तीसरे गुरु के 869 शब्द श्लोक व छंद 18 रागों में दर्ज हैं। ‘आनद साहिब’ उनकी उत्कृष्ट वाणी है। समाज सुधारक, महान प्रबंधक एवं तेजस्वी व्यक्तित्व

 गुरु अमर दास जी  ने आध्यात्मिक खोज के साथ-साथ नैतिक दैनिक जीवन दोनों पर जोर दिया। उन्होंने अपने अनुयायियों को भोर से पहले उठने, स्नान करने और फिर मौन एकांत में ध्यान करने के लिए प्रोत्साहित किया। एक अच्छा सच्चा भक्त होना चाहिए, अपने मन को वश में रखना चाहिए, भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए, धर्मात्मा पुरुषों की संगति की तलाश करनी चाहिए, भगवान की पूजा करनी चाहिए, ईमानदारी से जीवन यापन करना चाहिए, पवित्र पुरुषों की सेवा करनी चाहिए, दूसरे के धन का लालच नहीं करना चाहिए और कभी बदनामी नहीं करनी चाहिए उन्होंने अपने भक्तों के दिलों में गुरु की छवि के साथ पवित्र भक्ति के लिए प्रेरित किया गुरु अमरदास जी  एक सुधारक भी थे, और महिलाओं के चेहरे (एक मुस्लिम प्रथा) के साथ-साथ सती (एक हिंदू प्रथा) को भी हतोत्साहित करते थे। उन्होंने क्षत्रिय लोगों को लोगों की रक्षा के लिए और न्याय के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया

                                     स्वर्गलोक

 श्री गुरु अमरदास जी 95 वर्ष की आयु में 01 सितंबर 1574 ई. में गोइंदवाल साहिब में ज्योति जोत समा गए।

By-janchetna.in

Share:

More Posts

Visit Hemkunt Sahib

                                                      साल 2025 के लिए 25 मई से 23 अक्टूबर तक हेमकुंड साहिब के कपाट खुले रहेंगे इसके दर्शन

 History of today SUNDAY 13 April  2025

                                                                                            आज का इतिहास                                   रविवार 13 अप्रेल 2025                               वैसाख क्र.01 वैसाखी राजकीय अवकाश                                                          

badrinath yatra

                                                                                             आवागमन बद्रीनाथ पहुंचने का सबसे तेज़ रास्ता ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग है; दूरी 141 किमी है। बद्रीनाथ धाम भारत के सभी

Kedarnath Yatra

                                                                                     आवागमन हिमालय के पवित्र तीर्थों के दर्शन करने हेतु तीर्थयात्रियों को रेल, बस, टैक्सी आदि के द्वारा