ramnavmi special 

                             

रामनवमी विशेष

                               by-janchetna.in

  अरविंद मिश्र के मुताबिक राम नवमी 16 अप्रैल को 01:23 बजे से शुरू हो चुकी है और 17 अप्रैल को 03:14 बजे तक रहेगी. उदया तिथि के हिसाब से इसे 17 अप्रैल बुधवार को ही मनाया जाएगा. इस दिन राम नवमी पूजन का शुभ समय (Ram Navami Puja Time) 09:18 से 11: 32 तक है, इसके अलावा अति शुभ समय सुबह 11:32 बजे से 12:29 मिनट तक है

  श्रीरामनवमी का त्यौहार पिछले कई हजार सालों से मनाया जा रहा है।

रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है जो अप्रैल-मई में आता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा-पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था। 

हिन्दु धर्म शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुनः स्थापना के लिये भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था। श्रीराम चन्द्र जी का अवतार  चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में रानी कौशल्या की कोख से, राजा दशरथ के घर में हुआ था।

रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं लेकिन बहुत समय तक कोई भी राजा दशरथ को सन्तान का सुख नहीं दे पायी थीं जिससे राजा दशरथ बहुत परेशान रहते थे। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ को ऋषि वशिष्ठ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने को विचार दिया। इसके पश्चात् राजा दशरथ ने अपने जमाई, महर्षि ऋष्यश्रृंग से यज्ञ कराया। तत्पश्चात यज्ञकुण्ड से अग्निदेव अपने हाथों में खीर की कटोरी लेकर बाहर निकले। 

यज्ञ समाप्ति के बाद महर्षि ऋष्यश्रृंग ने दशरथ की तीनों पत्नियों को एक-एक कटोरी खीर खाने को दी। खीर खाने के कुछ महीनों बाद ही तीनों रानियाँ गर्भवती हो गयीं। ठीक 9 महीनों बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने प्रभु श्रीराम को जन्म दिया जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे, कैकयी ने श्रीभरत को और सुमित्रा ने जुड़वा बच्चों श्रीलक्ष्मण और श्रीशत्रुघ्न को जन्म दिया। भगवान श्रीराम का जन्म धरती पर दुष्ट प्राणियों को संघार करने के लिए हुआ था।

कबीर साहेब जी आदि श्रीराम की परिभाषा बताते है की आदि श्रीराम वह अविनाशी परमात्मा है जो सब का सृजनहार व पालनहार है। जिसके एक इशारे पर‌ धरती और आकाश काम करते हैं जिसकी स्तुति में तैंतीस कोटि देवी-देवता नतमस्तक रहते हैं। जो पूर्ण मोक्षदायक व स्वयंभू है। एक श्रीराम दशरथ का बेटा, एक श्रीराम घट घट में बैठा, एक श्रीराम का सकल उजियारा, एक श्रीराम जगत से न्यारा”।।

                                   रामनवमी पूजन

रामनवमी के त्यौहार का महत्व हिंदु धर्म सभ्यता में महत्वपूर्ण रहा है। इस पर्व के साथ ही माँ दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी होता है। हिन्दू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा अर्चना की जाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और लेपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आ‍रती की जाती है। कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते है।

                              रामनवमी का महत्व

यह पर्व भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। रामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है। हिंदु धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था अत: इस शुभ तिथि को भक्त लोग रामनवमी के रूप में मनाते हैं एवं पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य के भागीदार होते है। 

 इस दिन खीर, पूरी, साग, भजिए का सेवन करें। – इस दिन हलवा, कद्दू या आलू की सब्जी बनाई जा सकती है। – इस दिन माता दुर्गा और श्रीराम को भोग लगाने के बाद ही भोजन किया जाता है। – इस दिन प्रसाद में विशेष तौर पर पंजीरी बनाई जाती है।

वेदों पर वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान (आई-सर्व) के अनुसार, तारामंडल सॉफ्टवेयर ने भगवान राम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में सुनिश्चित किया है। भारतीय कैलेंडर के अनुसार जन्म का समय चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में दोपहर 12 बजे से 1 बजे के बीच होता है।

१८२ देशों में श्री राम की पूजा होती है। जहां हिंदू हैं वहां पे श्री राम हैं, कृष्ण है, शिव हैं और होली दिवाली है। दुनिया के १८५ देशों में से १८२ देशों में हिंदू बसते हैं और जहां हिंदू हैं वहीं पर श्री राम हैं।

                                        विवाह

देवी सीता मिथिला के नरेश राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थीं । इनका विवाह अयोध्या के नरेश राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्री राम से स्वयंवर में शिवधनुष को भंग करने के उपरांत हुआ था। इन्होंने स्त्री व पतिव्रता धर्म का पूर्ण रूप से पालन किया था जिसके कारण इनका नाम बहुत आदर से लिया जाता है।

राम और सीता के दो पुत्र थे, कुश और लव। कुश राम के बड़े बेटे थे

ऋषि विश्वामित्र का यज्ञ राम व लक्ष्मण की रक्षा में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इसके उपरांत महाराज जनक ने सीता स्वयंवर की घोषणा किया और ऋषि विश्वामित्र की उपस्थिति हेतु निमंत्रण भेजा। आश्रम में राम व लक्ष्मण उपस्थित के कारण वे उन्हें भी मिथिपलपुरी साथ ले गये। महाराज जनक ने उपस्थित ऋषिमुनियों के आशिर्वाद से स्वयंवर के लिये शिवधनुष उठाने के नियम की घोषणा की। सभा में उपस्थित कोइ राजकुमार, राजा व महाराजा धनुष उठाने में विफल रहे। श्रीरामजी ने धनुष को उठाया और तोड़ दिया इस तरह सीता का विवाह श्रीरामजी से निश्चय हुआ।

इसी के साथ उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से, मांडवी का भरत से तथा श्रुतकीर्ति का शत्रुघ्न से निश्चय हुआ। कन्यादान के समय राजा जनक ने श्रीरामजी से कहा “हे कौशल्यानंदन राम! ये मेरी पुत्री सीता है। इसका पाणीग्रहण कर अपनी पत्नी के रूप मे स्वीकर करो। यह सदा तुम्हारे साथ रहेगी।” इस तरह सीता व रामजी का विवाह अत्यंत वैभवपूर्ण संपन्न हुआ। विवाहोपरांत सीता अयोध्या आई और उनका दांपत्य जीवन सुखमय था।

                               स्वर्गलोक

भगवान राम जी की मृत्यु नहीं हुई थी। वो जल समाधि लिए थे सरयु  नदी के तट पर गये फिर वही से विष्णु का अवतार ले बैकुंठ धाम चले गए

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