राम मंदिर के लिए 1 हजार वर्षों तक लगातार राजपूत शासकों द्वारा लड़े गए युद्ध, जानें किसने कब-कब लड़ी जंग…


अयोध्या में राम मंदिर के लिए संघर्ष लगभग पांच शताब्दियों तक चला, जिसमें हजारों लोगों ने अपनी जान दे दी. कई राजवंश इसके लिए लड़ते हुए समाप्त हो गए और कई योद्धा भगवान राम के जन्मस्थान की रक्षा में फना हो गए. आज हम आपको बताने जा रहे हैं वो चौंकाने वाले ऐतिहासिक तथ्य जो राम मंदिर से जुड़े हैं. कनाडा के यॉर्क यूनिवर्सिटी से साउथ ईस्ट Asian स्टडीज में रिसर्च स्कॉलर युगेश्वर कौशल ने बताया कि कैसे करीब एक हजार साल पहले मिले शिलालेखों में राम मंदिर के अस्तित्व का पता चलता है.
इतिहासकार मानते हैं कि 1130 और 1150 में गहड़वाल (गहरवार) राजपूत वंश के सम्राट गोविंदचंद्र ने श्री रामजन्मभूमि स्थल पर एक विष्णु मंदिर का निर्माण कराया. 1150 में उन्होंने विष्णु हरि शिलालेख में उद्धृत पूरे क्षेत्र में लगभग एक हजार कुओं, टैंकों, विश्राम गृहों का भी निर्माण कराया. भारत में अक्सर गद्दार के नाम से पुकारे जाने वाले राजा जयचंद्र गहरवार, ऐतिहासिक तौर पर धर्मपरायण और महान योद्धा थे. पृथ्वीराज रासो जैसे काव्य में कई बातें सही नहीं लिखी गईं और कुछ लोगों ने नफरती वजह से उनको गद्दार कहना शुरू कर दिया. उन्होंने ही मंदिर को सबसे बड़ा रूप दिया और सोने से लाद दिया था.
जयचंद्र गढ़वाल ने स्वर्ण शिखरों से कराया था मंदिर का पुनर्निर्माण..
इतिहासकारों के मुताबिक त्रेता के ठाकुर शिलालेख में उद्धृत है कि 1184 में, राजा जयचंद्र गढ़वाल (गहरवार) ने स्वर्ण शिखरों के साथ अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर का पुनर्निर्माण किया और इसे और भी भव्य बना दिया. जयचंद्र भी आक्रांताओं से लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए. 1528-30 के बीच हंसवार के राजा रणविजय सिंह और उनकी पत्नी जयकुमारी ने उस समय के अन्य राजपूत शासकों के साथ मिलकर राम जन्मभूमि पर मीर बाकी द्वारा बाबरी मस्जिद के निर्माण का पुरजोर विरोध किया. जन्मभूमि परिसर 15 दिनों तक रणविजय सिंह के नियंत्रण में रहा, उसके बाद यह बाबरी मस्जिद का हिस्सा बन गया. राजा, उनकी पत्नी और स्वामी महेश्वरानंदजी मुगल सेना से लड़ते हुए शहीद हो गए.
जयपुर पुरालेख में राम जन्मभूमि का मानचित्र मंदिर के लिए हजारों राजपूत हुए शहीद..
वहीं साल 1678-1707 में औरंगजेब के समय पर राजेपुर के ठाकुर गजराज सिंह, सिसिंडा के कुंवर गोपाल सिंह, ठा. जगदम्बा सिंह, बाबा केशव दास और हजारों राजपूतों ने राम जन्मभूमि के लिए लगभग एक दर्जन लड़ाइयां लड़ीं. जगदम्बा सिंह और उनका बलिदान अवध की लोककथाओं में अमर है. 1717 के बाद, जयपुर के सवाई जय सिंह द्वितीय, जो स्वयं राम के पुत्र कुश के वंशज थे, ने पुनर्निर्माण के प्रयास में मथुरा, काशी, प्रयाग, उज्जैन और अयोध्या जैसे देश के महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों के आसपास कई किलेबंद टाउनशिप स्थापित कीं. जयपुर रॉयल अभिलेखागार में संग्रह से पता चलता है कि राम जन्मभूमि, अयोध्या की भूमि सवाई जय सिंह ने 1717 में खरीदी थी और परिसर में एक मंदिर बनाया गया था.
1717 से 18वीं शताब्दी के अंत तक, अनुभवजन्य साक्ष्य बताते हैं कि अवध के स्थानीय नवाबों और मुगल दरबार के बीच कई पत्र लिखे गए थे, जहां यह पाया गया कि स्थानीय नवाबों को सख्त निर्देश दिया गया था कि वे मंदिर को न छूएं क्योंकि यह जयपुर के राजा, जो भगवान राम के वंशज हैं, उनकी सम्पत्ति है और किसी भी उल्लंघन की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. दस्तावेज़ों के अनुसार, जयपुर के शाही परिवार के पास अयोध्या में राम जन्मभूमि और उसके आसपास 983 एकड़ जमीन थी. राम जन्मभूमि स्थल का नक्शा जयपुर रॉयल आर्काइव में उपलब्ध है.
नवाब शासन में हुआ मस्जिद का निर्माण..
सवाई जय सिंह की मृत्यु के कई साल बाद, यह क्षेत्र नवाब के शासन में आ गया, और संभवतः नवाब सआदत अली शासन के तहत एक मस्जिद का निर्माण किया गया था. अमेठी के राजा बंडलघोटी राजपूतवंश के गुरुदत्त सिंह और पिपरा के चंदेल राजा राज कुमार सिंह ने राम मंदिर के लिए नवाब सादात अली खान के साथ लगातार 5 लड़ाइयां लड़ीं. (लगभग 1800-14) इन लड़ाइयों में उनके कई करीबी रिश्तेदार और मंत्री मारे गये.
मकरही के राजा (हंसवार परिवार, चंद्रवंशी वंश से हैं) ने 1814-36 के बीच राम जन्मभूमि मंदिर को मुक्त कराने के लिए नवाब नसीरुद्दीन हैदर के खिलाफ 3 लड़ाइयां लड़ीं. गोंडा के राजा देवी बख्श सिंह (बिसेन) ने अवध क्षेत्र के सभी तालुकदारों और छोटे राज्यों को एकजुट किया और 1847-57 के बीच कई लड़ाइयां लड़ीं. इन लड़ाइयों में नवाब वाजिद अली शाह बुरी तरह हार गए. इन लड़ाइयों के दौरान ही एक छोटा चबूतरा और राम मंदिर परिसर में मंदिर का निर्माण किया गया और प्रार्थनाओं ने फिर से राम जन्मभूमि परिसर में अपना रास्ता बना लिया.
रोनाही गांव के पास चली थी लंबी लड़ाई..
नवाब को अवध के एकजुट राजपूत तालुकदारों की ताकत के बारे में पता चल गया था और उनकी प्रगति को अपमानित करने के लिए उनमें ज्यादा उत्साह भी नहीं था, उन्हें ये पंक्तियां कहने के लिए जाना जाता है, “हम इश्क के बंदे हैं, मजहब से नहीं वाकिफ, काबा हुआ तो क्या, बुतखाना हुआ तो क्या.” जन्मभूमि स्थल पर चबूतरा के निर्माण के बाद, अमेठी के एक मौलवी अमीर अली द्वारा एक टुकड़ी रवाना की गई, जिसे भीटी के राजकुमार जयदत्त सिंह ने रोनाही गांव के पास रोक दिया. उस स्थान पर एक लंबी लड़ाई लड़ी गई, जहां कई राजपूत सैन्य दल से लड़ते हुए मारे गए.
इसके तुरंत बाद, ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासन के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया, 1857 का विद्रोह शुरू हुआ, तालुकदारों ने गोंडा के बिसेनवंशी राजा देवी बख्श सिंह के नेतृत्व में लड़ाई लड़ी, लेकिन स्थायी समाधान मिलने से पहले ही 1857 का स्वतंत्रता आंदोलन अचानक समाप्त हो गया. ब्रिटिश प्रशासन ने भविष्य के किसी भी विकास पर स्थायी प्रतिबंध लगा दिया था और यथास्थिति बरकरार रखी गई थी.
संकलन -भगवानाराम सारस्वत अनूपगढ राजस्थान

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