इतिहास प्रथमग्रंथी बाबाबुढा जी@SH#EP=62

                               

                                      by-janchetna.in

बाबा बुढा जी का जन्म 6 अक्तूबर 1506 को अमृतसर के काठू नंगल गांव में जट सिख   परिवार में हुआ था । उनके पिता का नाम सुघा रंधावा और माता का नाम माई गौरान था। उनका जन्म नाम बूरा (ਬੂੜਾ) था। एक बच्चे के रूप में  अपने गाँव के बाहर मवेशी चराते समय उनकी मुलाकात गुरु नानक देव जी से हुई । उन्होंने गुरु नानकदेव जी से जीवन और मृत्यु के संबंध में कई प्रश्न पूछे  जैसे कि  उनकी कम उम्र में  गुरुनानक देव जी से एक बुद्धिमान बुजुर्ग की तरह उन्होंने अध्यात्म के बारे में बातचीत की गुरुनानक देव जी ने उन्हें बाबा बुढा नाम का आशीर्वाद दिया, क्योंकि वह गुरु नानक के शुरुआती सिखों में से एक थे, और उन्होंने गुरु नानक के उत्तराधिकारी पांच सिख गुरुओं का औपचारिक राज्याभिषेक समारोह किया; गुरु अंगद देव जी , गुरु अमर दासजी  , गुरु राम दासजी  , गुरु अर्जनदेव

16 अगस्त, 1604 को श्री हरिमंदिर साहिब में सिख धर्मग्रंथों के संकलन आदि ग्रंथ की स्थापना पर  बाबा बुढा जी  को गुरु अर्जनदेव जी  द्वारा पहला ग्रंथी नियुक्त किया गया था। 

जब बीबी भानी (गुरु अमर दास जी की बेटी) को मुगल सम्राट अकबर द्वारा दी गई उत्पादक कृषि भूमि का जागीर भूमि अनुदान (500 बिगगा ) मिली तो बाबा बुढा  उस भूमि के प्रशासक थे। परिणामस्वरूप यह भूमि बीड  बाबा बुढा जी’ के नाम से जानी जाने लगी।  भूमि पर एक गुरुद्वारा बनाया गया था, जिसका उपयोग खेती और शैक्षिक गतिविधियों के लिए किया गया था। 

जब माता गंगा ने गुरु पद का उत्तराधिकारी पाने के लिए एक पुत्र प्राप्ति की इच्छा जताई तो गुरु अर्जनदेव जी की जीवन साथी माता गंगा आशीर्वाद लेने के लिए घोड़ो पर सवार होकर शाही रिवाज से बाबा बुढा जी के पास गई तो उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान नही मिला तो जबकि बाबा बुढा जी के मुख से निकल गया गुरु क्या नु केवे फाज्डा पे गईया उन्होंने यह बात गुरु अर्जुनदेव जी को बताई गुरु अर्जुन देव जी बोले जब किसी संत फकीर से आश्रीवाद लेने जाते हे तो शाही ठाट से नही जबकि नीचे झुककर जाते हे तो माता गंगा ने बाबा बुढा जी के लिए स्वंय भोजन तेयार कर थाली में रखकर स्वंय दोनों हाथों से पकडकर बाबा बुढा जी के पास गई और भोजन ग्रहण करने हेतु आग्रह किया माता गंगा को इस प्रकार भोजन करवाने से बाबा बुढा जी बड़े प्रभावित हुये माता गंगा भोजन के साथ प्याज भी लेकर गई थी जब बाबा बुढा जी ने खाने हेतु हाथ से प्याज को तोड़ा तो बाबा बुढा जी के मुख से निकला माता गंगा आपकी कुख से पुत्र होगा जो अत्याचारियों के इस प्याज की तरह सिर तोड़ेगा इसी आशीर्वाद के बाद माता गंगा जी से गुरु हरगोबिंद जी का जन्म हुआ। 

30 मई, 1606 को गुरु अर्जनदेव जी की शहादत के बाद गुरु हरगोबिंद ने अकाल तख्त के निर्माण का आदेश दिया और इसके निर्माण की जिम्मेदारी बाबा बुड्ढा और भाई गुरदासजी  को सौंपी गई जब गुरु हरगोबिंद जी जेल में थे, बाबा बुड्ढा जी  ने निहंग सेना में सुधार किया, जिसे उस समय अकाल सेना कहा जाता था , हालांकि अब जत्थेदार बाबा बुड्ढा रंधावा के नाम पर इसका नाम बुड्ढा दल रखा गया है। आज भी बुढा दल के नाम से निहंग सिंघो की फोज हे

                    स्वर्लोक

जीवन भर सिख गुरुओं का अनुसरण करने के बाद, बाबा बुढा जी की मृत्यु 8 सितंबर 1631 को 124 वर्ष की आयु में रावी नदी के तट पर झंडा रामदास गाँव में हुई । गुरु हरगोबिंद जी उनके बिस्तर के पास थे और उन्हें  चिता पर ले जाकर और आदि ग्रंथ के अंश पढ़कर गुरु हरगोबिंद जी ने स्वंय उनका अंतिम संस्कार किया।

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