इतिहास माता गंगा जी@SH#EP=81
by-janchetna.in
जन्म(प्रकाश)- मऊ(फिल्लोर)
माता पिता- कृष्ण चंद
दादा दादी-अज्ञात
नाना नानी- अज्ञात
सास ससुर-बीबी भानी जी रामदास जी
भाई बहन- अज्ञात
जीवनसाथी-गुरु अर्जन देव जी
सन्तान-गुरु हरगोबिंद जी
पुत्रवधू- अज्ञात
पोता पोती- बाबा गुरदित्ताजी, सूरजमलजी,अनीरायजी,अटलरायजी,गुरु तेगबहादुरजी,वीरोजी
स्वर्गलोक-14 मई 1621 को बकाला
माता गंगा जी पांचवें गुरु अर्जन देव जी की जीवनसाथी थीं । वह गुरु-महल की उपाधि से सम्मानित चार पत्नियों में से एक हैं ।
माता गंगा जी का जन्म कृष्ण चंद के घर पर हुआ था जो मऊ गांव के मूल निवासी थे जो फिल्लौर से लगभग दस किलोमीटर पश्चिम में स्थित था।
माता गंगा जी की विवाह गुरु अर्जन जी से 19 जून 1589 को उनके पैतृक गांव में हुआ। माता गंगा जी के शादी के बाद कई साल तक सन्तान नही हुई तो उन्होंने गुरु अर्जुनदेव जी के पास संतान हेतु इच्छा जताई गुरु जी ने बताया की उन्हें सन्तान का आश्रीवाद बाबा बुढा जी दे सकते हे गुरु जी की बात मानकर माता गंगा जी घोड़े पर सवार होकर कई सिखों को साथ लेकर बाबा बुढा जी के पास गई तो बाबा बुढा जी के मुह से निकल गया की गुरु क्या नु केवे फ़ाजडा पे गईया मतलब गुरु जी के परिवार को केसे भागना पड़ गया माता गंगा जी ने यह बात गुरु अर्जुनदेव जी को बताई की आपके कहने अनुसार में तो सन्तान का अश्रीवाद लेने बाबा बुढा जी के पास गई थी परंतु उन्होंने तो श्राप दे दिया तो गुरु जी ने बताया की किसी संत फकीर या गुरु के पास शाही ठाट बाट से नही जबकि नम्रता से जाते हे यह सुनकर माता गंगा जी ने अपने हाथों से मीठे प्रसादे बनाये साथ में प्याज रखा व् स्वंय प्रसादो की थाली दोनों हाथों में पकड़ कर पैदल चलकर बाबा बुढा जी के पास गई व् बाबा बुढा जी को भोजन ग्रहण करने हेतु आग्रह किया बाबा बुढा जी माता गंगा द्वारा स्वंय उन्हें भोजन करवाने से बड़े प्रभावित हुये क्योंकि माता गंगा पांचवे गुरु अर्जुनदेव जी की जीवनसाथी थी बाबा बुढा जी ने जब खाने हेतु हाथ से प्याज फोड़ा तो उनके मूह से निकल गया की माता गंगा जी आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी जो इस प्याज की तरह दुश्मनों के सिर फोड़ेगा बाबा बुढा जी के अश्रीवाद से माता गंगा जी ने गुरु हरगोबिंद जी को जन्म दिया जो आगे चलकर सिखों के छ्टे गुरु बने
स्वर्लोक
माता गंगा जी का 14 मई 1621 को बकाला (जिसे बाद में ‘बाबा बकाला’ नाम दिया गया) में उनकी मृत्यु हो गई । [2] उनके अवशेषों को उनकी इच्छानुसार अंतिम संस्कार करने के बजाय ब्यास नदी में प्रवाहित कर दिया गया
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