इतिहास गुरु का बाग
गुरु का बाग केसे पहुंचे-गुरु का बाग अमृतसर से मात्र बीस किलोमीटर दूर अजनाला तहसील में हे जिसमे आप जरिये बस या स्वंय के साधन से जा सकते हे
इतिहास
गुरु का बाग गाँव घुकेवाला के पास हे यहा नोवे गुरु तेगबहादुर जी नो महीने नो दिन नो घड़ी रुके थे पूर्व में पांचवे गुरु अर्जनदेव जी मात्र एक दिन के लिए गुरु के बाग आये थे वहा उन्होंने राजे की चोरासी काटी थी उसके बाद गुरु तेगबहादुर जी आये और जहा गुरु अर्जनदेव जी ने राजे की चोरासी काटी थी जहा राजा व् गुरु साहब रुके थे उस जगह पर गुरु तेगबहादुर जी ने अपने हाथों से बाग लगाया पहले इसको गुरु की रोड कहा जाता था गुरु तेगबहादुर जी ने इसका नाम गुरु का बाग रखा और वरदान भी दिया जो कहेगा गुरु का बाग उसको लगेंगे दुगने भाग

गुरु साहब गाँव में रहते थे जहा उन्होंने अपने हाथों से कुआ लगाया व् पास में बेठने हेतु पीपल का पेड़ लगाया गाँव की संगत उसी कुए से पानी खींचकर गुरु साहब को स्नान करवाती थी गुरु साहब के हाथों से लगाया हुआ एतहासिक कुआ व् पीपल का पेड़ आज भी मोजूद हे गुरु साहब प्रतिदिन बाग में जाते थे और वहा बैठकर सिमरन करते थे गुरु साहब के हाथों से लगाया हुआ एतहासिक बाग व् कुआ आज भी मोजूद हे
गाँव वालों ने बताया की गुरु साहब ने माता गुजरी को पुत्र रत्न का वरदान भी इसी गाँव में दिया था गाँव में कोई हाथ देखने वाला आया तो गाँव की महिलाओ ने अपने अपने हाथ दिखाए महिलाओ के कहने पर माता गुजरी जी ने भी अपना हाथ दिखाया तो उसने बताया की हाथ की लकीरों अनुसार माता जी आपको पुत्र की प्राप्ति नही होगी यह सुनकर माता जी बड़ी उदास हुई शाम को गुरु साहब घर आये तो उन्होंने उदासी का कारण पूछा तो सुनकर गुरु साहब पहले तो नाराज हुये उन्होंने माता जी को कहा हमारे धर्म में हाथ दिखाने की मान्यता नही हे माता जी की उदासी को देखते हुये गुरु साहब ने वरदान दिया की आपके पुत्र तो होगा परंतु यहा नही पटना साहिब की धरती पर होगा पुत्र की चाहत में माता जी तभी से पटना साहिब हेतु जल्दी करने लगे व् गुरु साहब से विनीत की महाराज हम वही चले जहा हमे पुत्र की प्राप्ति होगी माता जी ने 26 साल तक गुरूजी की सेवा की कभी पुत्र की प्राप्ति हेतु इच्छा नही जताई इसलिए गुरूजी माता जी की विनीत को परवान कर गुरु साहब पटना हेतु रवाना हो गये
इस बात की जानकारी गाँव वालों को मिली तो पूरा गाँव एकत्रित होकर गुरु साहब के आगे विनीत करने लगे गुरु साहब हमे छोडकर मत जायो तो गुरु जी ने कहा माता गुजरी की विनीत को देखते हुये हमे जाना जरूरी हे परंतु आप जब भी मुझे याद करोगे में हाजिर हो जाऊंगा उसी वरदान के चलते आज भी गाँव वाले जब भी गुरु साहब को याद करते हे तो गुरु साहब हाजिर नाजिर हो जाते हे गाँव वालों की सेवा से खुश होकर गुरु साहब ने गाँव वालों को अनेक वरदान दिए गाँव वालों ने बताया की जब भी बरसात की जरूरत होती हे
ग्रामीण माता गुजरी हाल से देग बनाकर गुरु का बाग जाकर अरदास करते हे तुरंत बरसात आ जाती हे अगर बरसात से बाढ आ रही हो तो भी अरदास करने पर बरसात बंद हो जाती हे पंजाब में चाहे कितनी भी बा ढ आए पर घुकेवाला में बाढ नही आती उस समय गाँव में सांप बहुत थे सांप के काटने से अनेक ग्रामीणों की मोत हो चुकी थी ग्रामीणों ने गुरु साहब के आगे बेनती की तो गुरु साहब ने बरदान दिया आज के बाद सांप के काटने से किसी ग्रामीण की मोत नही होगी
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