चमकोर गढ़ी गुरुद्वारा चमकौर साहिब जिला रोपड़

               

chmkor garhi_Gurudwara_Chamkaur_Sahib District Ropar

यह एतिहासिक गुरुद्वारा  चमकौर साहिब के एतिहासिक युद्ध की गवाही भरता है| दिसंबर 1704 ईसवी में गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ने अपने परिवार और कुल 400 या 500 सिखों के साथ आनंदपुर साहिब को छोड़ दिया, जिस किले को मुगलों और पहाड़ी राजाओं की सैना ने मई 1704 ईसवी से घेरा डाला हुआ था। मुगलों ने कुरान की कसम खाई थी कि आप किले को छोड़ जाईये, आपको कुछ नहीं कहा जायेगा, लेकिन जब 20 दिसंबर 1704 ईसवी को गुरू जी ने किला छोड़ दिया तो मुगलों और पहाड़ी राजाओं ने गुरू जी के ऊपर हमला कर दिया।


आनंदपुर साहिब और रोपड़ के बीच सरसा नंगल नामक एक नदी बहती हैं, उस नदी में उस समय बहुत भयंकर बाढ़ आई हुई थी, गुरु जी का परिवार यहां तीन हिस्सों में बंटकर बिछड़ गया, इस जगह पर अब गुरुद्वारा परिवार विछोड़ा साहिब बना हुआ हैं, यह बात है 21 दिसंबर 1704 ईसवी की, उस दिन गुरू जी अपने दो बड़े साहिबजादों , पांच पयारे और कुल चाली सिखों के साथ चमकौर की कच्ची गढ़ी में पहुंचे। मुगल सेना पीछा कर रहे थे, चारों तरफ मुगल सेना थी, गुरु जी ने गढ़ी में मोर्चा लगा लिया।
चमकौर साहिब के युद्ध का नाम दुनिया के सबसे बहादुरी वाले युद्धों में आता हैं, जहां एक तरफ 10 लाख की विशाल मुगल सेना थी तो दूसरी तरफ गुरू गोबिंद सिंह जी, उनके दो बेटे, पांच पयारे और 40 सिख मिलाकर कुल 48 सिख। यह युद्ध था 48 vs 10,00000 जो अपने आप में बहादुरी की मिसाल हैं। यह युद्ध शुरू हुआ था 22 दिसंबर 1704 ईसवी में, गुरू जी ने पांच पांच सिखों के जत्थे बना कर युद्ध में बना कर भेजे, और जब पांच सिख 10 लाख मुगल सेना के साथ युद्ध करता था तो हर  एक सिख सवा लाख से लड़ता था, गुरू गोबिंद सिंह जी ने सवा लाख से एक लडायू, तबै गोबिंद सिंह नाम कहायू की बात को पूरा कर दिया। मुगलों सेना को लगा था गुरू जी के साथ दस बीस सिख होगें हम एक दो घंटे में युद्ध खत्म कर देगे, लेकिन उनका अंदाजा गलत साबित हुआ, सिख 48 थे लेकिन लड़ ऐसे रहे थे जैसे 500 सिख हो, गुरु गोबिंद सिंह जी का तेज ही इतना था, कोई मुगल गढ़ी के पास आने से डरता था, अगर किसी ने कोशिश की भी तो गुरु गोबिंद सिंह के तीर के निशाने ने उसे मौत की नींद सुला दी, गुरु जी का निशाना बहुत पकका था, मालेरकोटला के नवाब शेर मुहम्मद खान के भाई नाहर खान ने सीढ़ी लगाकर चमकौर गढ़ी पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन जैसे उसने सिर ऊपर उठाया तो बुरज पर खड़े गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने तीर से नाहर खान को नरक भेज दिया, फिर उसके भाई ने कोशिश की उसका भी यहीं हाल हुआ, तीसरा भाई छिपकर भाग गया।
#साहिबजादा_अजीत_सिंह_की_शहीदी
साहिबजादा अजीत सिंह जी गुरू गोबिंद सिंह जी के बड़े बेटे थे, उमर केवल 18 साल की, अपने पिता जी आज्ञा मांगी युद्ध में जाने के लिए, गुरु जी बहुत खुश हुए, उन्होंने अपने बेटे को सीने से लगाकर तीर देकर चमकौर के युद्ध में भेजा और कहा कोई भी वार पीठ पीछे नहीं होना चाहिए, सारे वार तीर तलवार तेरी छाती में लगने चाहिए, बाबा अजीत सिंह ने युद्ध में आकर ही तीरों की बौछार चला दी, बहुत सारे मुगलों को मौत के घाट उतार कर दिया,  जिसमें मुगलों के जरनैल अनवर खान का नाम भी आता हैं,ऊपर चमकौर की गढ़ी में कलगीधर पातशाह अपने बेटे के जौहर देखकर शाबासी दे रहे थे, जब बाबा अजीत सिंह के तीर खत्म हो गए तो उन्होंने तलवार निकाल कर युद्ध लड़ना जारी रखा, एतिहासिक कहता हैं कि युद्ध में बाबा अजीत सिंह को 350 के लगभग जख्म लगे, तीरों से, तलवारों से और एक भी जख्म पीठ पीछे नहीं लगा, इस तरह बाबा अजीत सिंह शहीद हुए। नमन हैं उनकी शहीदी को।
#साहिबजादा_जुझार_सिंह_की_शहीदी
साहिबजादा जुझार सिंह जी गुरू गोबिंद सिंह जी के दूसरे बेटे थे  जिनकी उमर उस समय 15 साल की थी, अपने बड़े भाई बाबा अजीत सिंह की शहीदी के बाद आपने भी अपने गुरूपिता से  युद्ध में जाने की आज्ञा मांगी, गुरू जी ने बाबा जुझार सिंह को भी खुशी खुशी युद्ध में भेजा  ऐसे ही जौहर दिखाते हुए बाबा जुझार सिंह भी शहीद हुए। अपने दोनों बेटों को शहीद होते हुए देखकर गुरु जी ने चमकौर की गढ़ी से जैकारों से शाबासी  दी। यह था गुरू गोबिंद सिंह जी का प्रताप जो अपने बेटों को युद्ध में खुद लड़ने के लिए भेजते है और उनकी शहीदी पर प्रभु का शुकराना करते हैं।

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