इतिहास डेरा बाबा नानक
हिंदुस्तान के पंजाब राज्य के गुरदासपुर जिले में एक शहर और नगर परिषद है । यह डेरा बाबा नानक तहसील का उप-जिला मुख्यालय है । यह जिला मुख्यालय गुरदासपुर शहर से 36 किमी दूर है । नवंबर 2019 से इसके तीर्थस्थल पर भारत और पाकिस्तान के बीच एक गलियारा स्थापित किया गया है।
डेरा बाबा नानक, सिखों के सबसे पवित्र स्थानों में से एक, रावी नदी के तट पर स्थित है । डेरा बाबा नानक में तीन प्रसिद्ध गुरुद्वारे हैं श्री दरबार साहिब, श्री चोल साहिब और प्रथम सिख गुरु , गुरु नानक के सबसे बड़े पुत्र टाली साहिब ( बाबा श्री चंद जी का गुरुद्वारा ) । गुरु नानक पहले सिख गुरु थे और ऐसा माना जाता है कि वे वर्तमान शहर के सामने पखोके मेहमरान गांव के पास “सर्वशक्तिमान के साथ घुलमिल गए” थे और उन्होंने इसका नाम करतारपुर रखा – एक शहर जो पाकिस्तान की सीमा पर स्थित है ]बेदी गुरु नानक जी के वंशजों ने एक नया शहर बनाया और अपने पूर्वज के नाम पर इसका नाम डेरा बाबा नानक रखा।

तीर्थयात्री इस पवित्र शहर में बड़ी संख्या में आते हैं। डेरा बाबा नानक को डेरा बाबा नानक की नव निर्मित तहसील का मुख्यालय बनाया गया । डेरा बाबा नानक एक ऐतिहासिक शहर है और इसमें कई गलियाँ और घर हैं जिन्हें गुरु नानक के समय से संरक्षित किया गया है। डेरा बाबा नानक से करतारपुर कोरिडोर मात्र पांच किलोमीटर दूर हे जहा से तीर्थयात्री सीमा पार पाकिस्तान में प्रवेश कर करतारपुर में गुरुद्वारा दरबार साहिब के दर्शन करते हैं।
गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब गुरु नानक की स्मृति में बनाया गया था। वह दिसंबर 1515 ई. के दौरान अपनी पहली उदासी (दौरे) के बाद अपने परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए यहां आए थे। उनकी पत्नी माता सुलक्खनी और उनके दो बेटे श्री चंद और लखमी चंद यहां डेरा बाबा नानक के पास पखो-के-रंधावा में अपने मायके में रहने आए थे , जहां गुरुनानक देव जी के सुसर मूलचंद जी पटवारी थे।
जीवन के अंतिम पड़ाव में गुरुनानक देव जी करतारपुर रहते थे तब वे डेरा बाबा नानंक में स्थित कुआ पर अकसर आया करते थे और संगत को उपदेश दिया करते थे वो एतिहासिक कुआ आज भी मोजूद हे जिसके अम्रत मई मीठा जल ग्रहण करने से अनेक दुःख दूर होते हे वही पर गुरुद्वारा साहिब सुभायेमान हे 70 वर्ष की साधना के पश्चात सन् 1539 ई. को गुरुनानक देव जी स्वर्गलोक चले गये
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