इतिहास गंगू ब्राह्मण सहेडी
गंगू एक ब्राह्मण, आनंदपुर साहिब में एक सेवादार था जो गुरु घर में रसोइया था गंगू उन कश्मीरी पंडितों में से एक थे जो नौवें नानक यानी सत गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में आए थे, (मुगल अधिकारियों द्वारा दी गई धमकियों से चिंतित)। गंगू, जो उस समय लगभग 25 वर्ष का था, कश्मीर लौट आया, लेकिन पांच साल बाद वह सत गुरु गोबिंद राय की सेवा में प्रवेश करके गुरु के दरबार में लौट आया । गंगू को एक बेटा हुआ जिसका नाम उन्होंने राज कौल रखा, जिसका पालन-पोषण उनके दादा-दादी ने कश्मीर में किया।
माता गुजरी और उनके पोतों की गिरफ्तारी में गंगू की भूमिका
अनदपुर का किला छोड़ने के बाद सरसा नदी के किनारे माता गुजर कोर व् दो छोटे साहिबजादे गुरु साहब से बिछुड़ गये अचानक रास्ते में उन्हें गंगू मिल गया, जो किसी समय पर गुरु महल की सेवा करता था। गंगू ने उन्हें यह आश्वासन दिलाया कि वह उन्हें उनके परिवार से मिलाएगा और तब तक के लिए वे लोग उसके घर में रुक जाएं।
माता गुजरी जी और साहिबजादे गंगू के घर चले तो गए लेकिन वे गंगू की असलियत से वाकिफ नहीं थे। गंगू ने लालच में आकर तुरंत वजीर खां को गोबिंद सिंह की माता और छोटे साहिबजादों के उसके यहां होने की खबर दे दी जिसके बदले में वजीर खां ने उसे सोने की मोहरें भेंट की।
खबर मिलते ही वजीर खां के सैनिक माता गुजरी और 7 वर्ष की आयु के साहिबजादा जोरावर सिंह और 5 वर्ष की आयु के साहिबजादा फतेह सिंह को गिरफ्तार करने गंगू के घर पहुंच गए। उन्हें लाकर ठंडे बुर्ज में रखा गया और उस ठिठुरती ठंड से बचने के लिए कपड़े का एक टुकड़ा तक ना दिया।
गंगू की मृत्यु
गंगू और उसकी पत्नी को 1710 में बंदा सिंघ बहादुर ने मार डाला और सेना के साथ उसके गांव को भी नष्ट कर दिया।