“जनचेतना भारत भ्रमण DAY=05”
दिनाक 03-12-23 को सुबह छ बजे जनचेतना टीम आगे के भ्रमण हेतु रवाना हुई
जो दरबार साहिब तरनतारन होते हुये 58 किलोमीटर का सफर तय कर सुबह 9 बजे अमृतसर दरबार साहिब पहुंच गई आराम हेतु गुरुद्वारा साहिब में रूम पूछा तो पता चला की बार बजे चेक आउत होगा मतलब बारह बजे बाद रूम मिलेगा उपरांत जलियांवाला बाग गुरु का महल बाबा टल गुरुद्वारा अमृतसर का बाजार इत्यादी का भ्रमण किया बारह बजे तक भटकने के बाद गुरु अंगतदेव सरा में पांच सो रूपये में रूम मिला बाद में पता चला पांच सो में बाहर होटल में भी रूम मिल जाता हे जो हम किसी भी वक्त ले सकते हे अमृतसर का इतिहास गौरवमयी है। यह अपनी संस्कृति और लड़ाइयों के लिए बहुत प्रसिद्ध रहा है। अमृतसर अनेक त्रासदियों और दर्दनाक घटनाओं का गवाह रहा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा नरसंहार अमृतसर के जलियांवाला बाग में ही हुआ था। इसके बाद भारत पाकिस्तान के बीच जो बंटवारा हुआ उस समय भी अमृतसर में बड़ा हत्याकांड हुआ। यहीं नहीं अफगान और मुगल शासकों ने इसके ऊपर अनेक आक्रमण किए और इसको बर्बाद कर दिया। इसके बावजूद सिक्खों ने अपने दृढ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति से दोबारा इसको बसाया। हालांकि अमृतसर में समय के साथ काफी बदलाव आए हैं लेकिन आज भी अमृतसर की गरिमा बरकरार है।
अमृतसर लगभग साढ़े चार सौ वर्ष से अस्तित्व में है। सबसे पहले गुरु रामदास ने 1577 में 500 बीघा में गुरूद्वारे की नींव रखी थी। यह गुरूद्वारा एक सरोवर के बीच में बना हुआ है। यहां का बना तंदूर बड़ा लजीज होता है। यहां पर सुन्दर कृपाण, आम पापड, आम का आचार और सिक्खों की दस गुरूओं की खूबसूरत तस्वीरें मिलती हैं।अमृतसर में दरबार साहिब के अलावा देखने लायक कुछ है तो वह है अमृतसर का पुराना शहर। इसके चारों तरफ दीवार बनी हुई है। इसमें बारह प्रवेश द्वार है। यह बारह द्वार अमृतसर की कहानी बयान करते हैं। अमृतसर दर्शन के लिए सबसे अच्छा साधन साईकिल रिक्शा और ऑटो हैं। इसी प्रचालन को आगे बढ़ाने और विरासत को सँभालने के उद्देश से पंजाब पर्यटन विभाग ने फाजिल्का की एक गैर सरकारी संस्था ग्रेजुएट वेलफेयर एसोसिएशन फाजिल्का से मिलकर, फाजिल्का से शुरू हुए इकोफ्रेंडली रिक्शा ने नए रूप, “ईको- कैब” को अमृतसर में भी शुरू कर दिया है। अब अमृतसर में रिक्शा की सवारी करते समय ना केवल पर्यटकों की जानकारी के लिए ईको- कैब में शहर का पर्यटन मानचित्र है, बल्कि पीने के लिए पानी की बोतल, पढ़ने के लिए अख़बार और सुनने के लिए एफ्फ़ एम्म रेडियो जैसे सुविधाएं भी है।
गुरु तेगबहादुर जी दरबार साहिब अमृतसर आये तो वहा पर मोजूद मसंदो ने दरबार साहिब के ताले लगा दिए व् गुरु साहब को अंदर प्रवेश नही करने दिया गुरु साहब बड़े उदास हुये माता गुजरी भी उनके साथ थी गुरु साहब ने बाहर से ही माथा टेका और श्राप दिया अम्बर सरिये अंदर सडीए वहा से रवाना हो गये यह देख माता गुजरी बड़ी उदास हुई उन्होंने गुरु साहब से पूछा अब हम कहा जायेंगे तो गुरु साहब ने कहा अब हम वहा जायेंगे जहा से हमे आने ही नही देंगे इस बात की जानकारी माँइया को लगी तो माँइया गुरु साहब के आगे विनीत की व् घर ले जाकर भोजन करवाया तब गुरु साहब ने माँइया(महिलाये) को वरदान दिया माँइया रब रजाइया
अमृतसर दरबार साहिब के नजदीक ही गुरु का महल हे
सिखों के चौथे गुरु, गुरु राम दास जी ने 1573 में गुरुद्वारा गुरु का महल बनवाया था। इस स्थान पर, दस गुरुओं में से पांचवें गुरु अर्जन देव जी का विवाह हुआ था और उन्हें गुरु के रूप में नियुक्त किया गया था। वह गुरु राम दास जी के पुत्र और पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब का आधिकारिक संस्करण लिखने वाले पहले गुरु थे।
नौवें गुरु और गुरु अर्जन देव जी के पोते, बाबा अटल राय और श्री गुरु तेग बहादुर का जन्म यहीं हुआ था। गुरु तेग बहादुर के पिता श्री गुरु हरगोबिंद सिंह भी अस्थायी रूप से यहां रुके थे।
दरबार साहिब के नजदीक ही जलिया वाला बाग हे जहा पर बहुत बड़ा कत्लेयाम हुआ था गोलियों के निशान आज भी मोजूद हे
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